औद्योगिकीकरण के इस दौर में हर देश विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने में अपना योगदान दे रहा है। इस सूची में शामिल होने वाले देशों में विकसित देशों का प्रतिशत विकासशील देशों की अपेक्षा कई अधिक हैं। निरंतर बढ़ती जनसंख्या के कारण मनुष्य द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली कई प्रकार की वस्तुएं इस्तेमाल करने पर इधर उधर कही भी ऐसे ही फेंक दी जाती है। जो इस्तेमाल होने या खराब होने के बाद कचरा रूप में परिभाषित होती हैं।
अपशिष्ट पदार्थ या कचरा उसे कहते है जब नियमित रूप से घरों, कारखानों, ऑफिस, इमारतों और धार्मिक कार्यों से जुड़ी सामग्री को इस्तेमाल करने के बाद उसे व्यर्थ पदार्थ समझ कर सड़कों या जल में फेंक या बहा दिया जाता है। अपशिष्ट पदार्थ से अभिप्राय बेकार या इस्तेमाल न होने वाली वस्तुओं से है। अपशिष्ट पदार्थ में शामिल होने वाली चीजों को तीन भागों में बांटा जा सकता हैं- ठोस, द्रव और गैस।
भारत के वर्तमान सन्दर्भ में देखे तो भारत विश्व का दूसरी सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। ऐसे में हमारे देश में कचरा प्रबन्धन की समस्या काफी ज्यादा है। देश की राजधानी और दिल कहे जाने वाली दिल्ली में आज कूड़े कचरे का एक विशाल पहाड़ बन चुका है। जिसका निपटान करने में दिल्ली सरकार अभी तक विफल रही हैं। इस स्थिति में हमारे देश में कचरा या अपशिष्ट प्रबन्धन होने की बहुत आवश्यकता है। अपशिष्ट प्रबन्धन से अभिप्राय अपशिष्ट प्रदार्थों के नियोजन, नियंत्रण और निर्वहन करने से है। आज बड़े स्तर पर प्लास्टिक का उपयोग हो रहा हैं। चाहे वह घर के समान रूप में हो या परिवहन में प्रयोग की जा रही प्लास्टिक रूप में हो। रसोई में इस्तेमाल होने वाली वस्तु में प्लास्टिक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। रसोई के बर्तन, नहाने का टब, मग्गा आदि से लेकर सभी चीजों में प्लास्टिक ही प्लास्टिक दिखाई पड़ती है।

दैनिक जीवन में प्रयोग की जा रही प्लास्टिक की थैलियां, बोतलें, खाने की वस्तुओं के रैपर आदि दैनिक जीवन का एक सामान्य हिस्सा बन चुके है। तो वहीं कागज के इस्तेमाल और पेड़ो के संबन्ध की बात की जाए तो कागज बनाने के लिए देश में 80 हजार से डेढ़ लाख पेड़ रोजाना काटे जा रहे है। स्कूल, कॉलेज, ऑफिसों से लेकर हर किसी कार्य में कागज का इस्तेमाल किसी ना किसी रूप में होता है। ऐसे में कागज के इस्तेमाल और आवश्यकता के चलते लाखों पेड़ की आहुति चढ़ा दी जाती है। वन विभाग के आंकड़ो के अनुसार 01 टन कागज बनाने के लिए 17 बड़े पेड़ो को काटा जाता है। दिल्ली वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक बीते 06 साल में 52 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में मौजूदा आबादी की जरूरत के हिसाब से 09 लाख पेड़ कम है। और फॉरेस्ट कवर महज 11 प्रतिशत तक ही बचा है। राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश के 33.3 प्रतिशत भू- भाग पर वन होने चाहिए, लेकिन आलम यह है कि देश का केवल 19.5 प्रतिशत भाग ही वन से ढका हुआ है। ऐसे में यह स्थिति बेहद ही भयावह हैं।
अपशिष्ट प्रदार्थों के प्रबन्धन के लिए 3आर(R) सबसे अच्छा तरीका है। जिसके अंतर्गत खराब या व्यर्थ वस्तु का पुनः चक्रण, पुनः उपयोग, कम उपयोग करने की बातें शामिल है। इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक, ई-कचरा , कागज, लोहे, रबड़ की वस्तुएं सम्मिलित है। ई- कचरा को इधर उधर न फेकने लिए लोगों को जागरूक करने की बहुत जरूरत है। साथ ही रसोई से निकलने वाले कचरे, सब्जी,फल के छिलकों से जैविक खाद बनाने की प्रकिया, जैविक खाद का प्रयोग और उसकी खेती से परिचित कराना एक बेहतर माध्यम हो सकता है। किसानों को परम्परागत कृषि विकास योजना(पीकेवीवाई) के तहत इस खाद की खेती होने वाले फायदों को बताकर इस खेती के बढ़ावा देने की जरूरत हैं। सतत विकास को अपनाकर संसाधनों के तेजी से हो रहे दोहन को रोक कर आगे आने वाली भावी पीढ़ी के लिए भी संसाधनों की मौजूदगी आराम से उपलब्ध करायी जा सकती है। कम बिजली खर्च वाले साधनों को अपनाकर कई मेगावाट बिजली को बचाया जा सकता है। बिजली के स्थान पर सौर और पवन ऊर्जा को अपनाकर जल को भी बचाया जा सकता है।
इस विषय की गम्भीरता से अपरिचित लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार ने समय समय पर कई कार्यक्रमों, सेमिनार और योजनाओं के जरिये पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य भी किया है। जैसे प्रधानमंत्री मोदी जी का देश को 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त अभियान पर जोर देना हो, स्व्च्छता अभियान के तहत साफ सफाई रखने पर जोर देना हो, पीकेवीवाई योजना के तहत जैविक खेती को बढ़ावा देने वाली योजना का निर्माण करके जल, वायु प्रदूषण और मृदा अपरदन को रोकना हो। स्वच्छ भारत अभियान के तहत पिछले 05 सालों में 12 करोड़ से भी ज्यादा शौचालय का निर्माण करके गन्दगी से राहत दिलाना हो, वाहनों में बीएस मानकों को तय करके BS4 मानक वाले वाहनों पर रोक लगाकर प्रदूषण से राहत पाना हो, उज्ज्वला भारत योजना के तहत वायु प्रदूषण और महिलाओं को स्वास्थ्य संबन्धी बीमारी से छुटकारा दिलाना हो, नमामि गंगे योजना के तहत गंगा के जल को साफ करना हो, उजाला योजना के तहत 35 करोड़ एलईडी(LED) बल्ब को बांटना हो, इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ावा देना हो, कुसुम योजना के तहत परम्परागत ऊर्जा ( सौर उर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस) आदि के साधनों को बढ़ावा देना जैसी चीजें शामिल है।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से की जा रही इस पहल से आज इस क्षेत्र में न केवल सरकार संस्थाएं अपितु निजी संस्थाएं भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेकर पर्यावरण संरक्षण में अपना महवपूर्ण योगदान दे रही है। उदाहरण- “पर्यावरण संरक्षण” जो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधि है। जिसके अंतर्गत अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े ज्वलंत मुद्दों के प्रति बड़ी संख्या में लोगों को जागरूक करने व पर्यावरण को बचाने वाले तरीकों से अवगत कराया जा रहा है। उदाहरण- जल संरक्षण, वन संरक्षण, पेड़ो का महत्व और इनकी जरूरत, जैविक खाद को बनाने की प्रकिया और इसकी खेती को बढ़ावा देने पर जोर, रसोई बगिया, जीव जन्तुओं के हित में किये जा रहा काम जैसे- पक्षियों और जन्तुओं के भोजन की व्यवस्था करना हो, पक्षियों के लिए चुग्गा घर स्थापित करना हो और अपशिष्ट प्रदार्थ के प्रबंधन के तरीकों को जनता तक पहुँचाने का कार्य सकारात्मक दिशा में बढ़ते हुए किया जा रहा हैं। संस्था द्वारा हरित घर को बढ़ावा देने के लिए इस क्षेत्र में निरंतर कार्य किया जा रहा है। हाल ही में संस्था के हरित घर बनाने के एक कार्यक्रम में 55,114 परिवारों ने अपने घरों को हरित घर बनाने की शपथ ली। 46,169 पर्यावरण प्रहरी द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रण लिए गए। वर्तमान समय में इस संस्था की ब्रांचों का विस्तार आज सम्पूर्ण भारत में है। ऐसे में सरकार को भी चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जनता को ओर अधिक जागरूक करने की जरूरत है। मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से विज्ञापनों और सेलेब्रिटीज़ की सहायता से पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी बातों को अधिक से अधिक प्रचार प्रसार करने की जरूरत है। सरकारी और गैर सरकारी पर्यावरण संस्थाओं को बढ़ावा देकर भी अपशिष्ट प्रबन्धन और पर्यावरण संरक्षण का काम किया जा सकता है।