एक पेड़ और कट गया, नन्ही चिड़िया का संकट बड़ गया
न जाने कब इस पेड़ की बारी आएगी, फिर न जाने कहां वह अपना आशियाना बनाएगी।

सोच -विचार, चिंतन- मंथन सब कर देख लिया, बरस रहा जो कहर स्वयं पर वह भी सह लिया
पर स्वार्थी इंसान का जुनून वह समझ ना पाएगी, फिर ना जाने वह कहां अपना घर बनाएगी।

अभी डाल पर उसने नया घोंसला था बनाया, सुंदर पत्तों और तिनकों से था सजाया
इसमें कुछ दिन भी यह ना रह पाएगी, फिर ना जाने कहा वह अपना घरौंदा बनाएगी।

अंडे भी अभी सेये नहीं पूरे उसने,नजर डाली इन मासूमों पर किसने
ना जाने वह अपने बच्चों को कभी देख भी पाएगी
फिर ना जाने कहां गया अपना घर बनाएगी ?

एक बड़ा प्रश्न चिह्न उसके जीवन पर आया, वाह रे! मानव कैसा तूने धर्म निभाया
ना कर प्रकृति पर अत्याचार वरना होगा संहार, यह बात कब तुझे समझ में आएगी
फिर ना जाने कहां वह अपना घोंसला बनाएगी।

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