वानिकी एक ऐसा शब्द है जिसका संबंध हम सभी से टूटता जा रहा हैं. आज के समय में वानिकी शब्द को पसंद तो सभी करते हैं लेकिन वानिकी को बहुत कम लोग अपना पाते हैं. देखा जाए तो वानिकी के बिना हमारा जीवन अधूरा हैं, यह भी कहा जा सकता है बिना वानिकी के हमारा जीवन असंभव हैं. प्रकृति की सुंदरता को देखना या प्रकृति का आनंद लेने के लिए हम सभी बड़े- बड़े अभ्यारण्यों या जंगलों में भ्रमण के लिए जाते हैं. लेकिन हम लोग ही अपने स्वार्थ के लिए इन जंगलों को काटते या जलाते हैं. हमारे जीवन का जो आधार है उसको नष्ट करने वाले भी हम ही हैं.

वन भारतीय सभ्यता और प्राचीन संस्कृति की बेशकीमती अमानत हैं. भारतीय संस्कृति का तो विकास ही वनों के गर्भ से हुआ हैं. आदिम काल में आदिमानव वनों से ही अपना गुज़ारा करते थे. वह पेड़ों के पत्तों को वस्त्र बनाते और पत्तों से ही अपनी भूख मिटाते थे. इन सभी बातों का आज के समय में कोई महत्व नहीं रहा क्योंकि लोगों को अपने स्वार्थ से अधिक प्रिय कुछ भी नहीं हैं. इसी कारण से अंधाधुंध पेड़ो की कटाई कर बड़े-बड़े उद्योगों को स्थापित किया जा रहा हैं.

सांस्कृतिक साहित्य से यदि कालिदास और वाल्मीकि के विषय पर बात हो तो हमें आज के वनों की दशा को देखते हुए यह बिल्कुल भी विश्वास नहीं होता कि हिमालय से लेकर रामेश्वरम तक वन तथा वन के जीव-प्राणियों का मनमोहक दृश्य कैसे प्रस्तुत किया गया होगा. अतः वन शान्ति का प्रतीक है. आज की पीढ़ी का मन और दिमाग अशांति का घर हैं क्योंकि न ही मनुष्य आपस में एक दूसरे को अपनाते और न ही मनुष्य प्रकृति को अपना मानते. इंसान बस अपने स्वार्थ के लिए मनुष्य से संबंध रखता है. इसी तरह इंसान प्रकृति को भी अपने मतलब से ही महत्व देता है यदि उसे शन्ति की आवश्यकता होती है तभी वह प्रकृति की अहमियत को समझ पाता है.

वनों से मूल्यवान इमारती लकड़ियां, सागवन आदि प्रचुर मात्र में मिलती हैं. इनका प्रयोग भवन निर्माण, रेल, कागज़ आदि के लिए उद्योगों में किया जाता हैं. तेल, रबड़, टायर आदि उद्योगों का विकास वन सम्पदा पर ही निर्भर हैं. इन सभी तथ्यों को जानते हुए भी पेड़ों के कटाव या वनों के जलाने पर कोई सख़्त नियम-कानून पारित नहीं किए जाते. वानिकी को नुकसान पहुंचाकर उद्योगों की स्थापना तो हो जाएगी लेकिन फिर वस्तु निर्माण के लिए कच्चे माल की कमी हो जाएगी. ऐसे में एक विकासशील देश तो कभी भी विकसित देश नहीं बन पाएगा.

भारत में वानिकी एक प्रमुख ग्रामीण आर्थिक क्रिया, जनजातीय लोगों के जीवन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू और एक ज्वलंत पर्यावरणीय तथा सामाजिक-राजनैतिक मुद्दा होने के साथ ही पर्यावरणीय प्रबंधन और धारणीय विकास हेतु अवसर उपलब्ध करने वाला क्षेत्र भी हैं. वानिकी के वर्तमान परिदृश्य जनजातियों और स्थानीय लोगों के जीवन, पर्यावरणीय सुरक्षा, संसाधन सरंक्षण और विविध सामाजिक-राजनैतिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं.

वानिकी भारत जैसे देश में बहुत रूप से उपयोगी हैं. वृक्षों की पत्तियों को गाय-भैंस और अन्य जानवरों के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल करना.मृदा एवं जल सरंक्षण होगा. ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा और ग्रामीण लोगों को रोज़गार के नए अवसर मिलेंगे. इसी के साथ टिकाऊ रूप से ग्रामीण विकास भी होगा .

वानिकी आय के स्त्रोत के साथ पर्यावरण प्रदूषण दूर करने का भी एक अच्छा उपाय है. अतः वानिकी ऐसी होनी चाहिए जिससे पर्यावरण सुधार के साथ-साथ उद्योग प्रबंधकों की सफलता के लिए ईंधन, इमारती लकड़ी व उत्तम खाद भी उपलब्धता हो सके.

वृक्षों का सम्मान करेंगे, देश को ऊर्जावन बनाएंगे |

Paryavaran Sanrakshan

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